भरे हुए कैलेंडर के किसी
खतम हुए झूम कॉल पर
अकेले रूके अटेंडी की तरह
जिंदगी ताक रही हैं
सुनसान प्लेटफॉर्म पर
छूटी हुई ट्रेन की वजह
Category: hindi
मुठी
ख्वाब सी लगती हैं अब
जिंदगी देखती थी ख्वाब जब
साँसे भी सेहमी सी हैं अब
क्या पता आ जाये तूफान कब
पलके खुली रहेंगी रातभर अब
बंद मुठी में उमीदें सब
तक़दीर
“जिंदगी सुन, तू यही पे रुकना
हम हालात बदल कर आते हैं”
उधार में थोड़ी सी हिम्मत लेकर
अपने वजूद को उम्मीद दे आते हैं
इस तूफ़ान को थाम लो थोड़ा जरा
एक कश्ती को भवंडर से ले आतें हैं
इन पलों को हिरासत में रखना
कुछ ग़मों को आजाद कर आते हैं
खोई हुई धड़कनों की गूँज में
अपने आप को ढूँढ ले आते हैं
जिंदगी सुन, अपनी तक़दीर को
हम थोड़ा हैरान कर आते हैं
कसूर
एक कसूर करने जा रहाँ हूँ
कुछ एक सुर छोड़ जा रहाँ हूँ
जिन नगमों को हम गा ना सकें
तेरे आँगन में दफन किये जा रहाँ हूँ
तेरी आँखरी साँसों की गूँज समेट
कुछ खामोशी ढूंढने जा रहाँ हूँ
मक़रूज़ जिंदगी से कुछ जवाब
अब उसूल करने जा रहाँ हूँ
एक खुदा की खुदगर्ज़ी का कसूर
गवारा करने जा रहाँ हूँ
बोझ
बरसो पहले आयी थी
ऐसी ही एक दीवाली
जिंदगी रोशन नही थी उतनी
हुई मुस्कान से तेरी जितनी
इसलिए आज रो रहे हैं
बनकर हम फरियादी
त्यौहार कैसे बताओ मनाये
तेरे बिना सजा हैं ये रोशनाई
कैसी अंजान बीमारी में फँसकर
हार गयी फूटी तक़दीर
अब यादों का झोला फैलाकर
हम बन गए एक फकीर
घूम रहें हैं कंधोंपर लेकर आज भी
बच्चे तुझसे बिछड़ने का बोझ
लंबी चलेगी अबसे दिवाली क्यों कि
एक साल सा लगता हैं हर रोज
घाँव
ये दिल इतनी हड़बड़ी में क्यों हैं
कही वापिस से धड़कने की इसे
कोई उम्मीद तो नही हैं
इस सपनों के समशान में
कोई मिल जाये तो समझादे उसे
ये घाँव आँखरी थोड़ी ही हैं
शिकायतें
आँखों में आँसू अभी से हैं
स्याही ने भी शिकवा लिखवा लिए
दिल भी अपना थोड़ा फरियादी हैं
आज जाने की इतनी जिद्द क्यों हैं
हम ना बन सके हमसफर तो क्या
साथ रख लो छोटा सा ये नजराना
दिल के साथ चुरा ले जाओ थोड़ी सी
हमसे कुछ शिकायतें हमारी
हस्ती
चाँद को यूँ जलाया ना करो
मक़सद हमारे यूँ बदलाया ना करो
आदत तुम्हारी यूँ लगाया ना करो
बेजार दिल ने की शिकायत खुदा से
क्यों तराशा तेरे चेहरे को इतने इत्मिनान से
बोला इसलिए समाया तुझमे कायनात को
ताकि मेरी हस्ती पे शक तुम किया ना करो
हकीक़त
मेरे धड़कनों की दस्तकों से
गूँजी थी तेरी इजाजत
सपनों में हो शामिल तेरे
जिंदगी हो गयी थी नुमायत
अब तो बस यही हैं
उस जिंदगी से ये शिकायत
फीके हुए ख्वाबों जैसी
हो गयी हैं हमारी हकीक़त
गांठ
एक पतंग की डोर सी
थी सीधी साधी जिंदगी
आकर पवन के झांसे में
कुछ गुमराह सी हो गई
जोश में उड़ान जो भरी
कुछ गांठे ये सख्त हो गई